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. भगवती सूत्र : एक परिशीलन १३७ प्रतियों के आधार से तैयार किया गया है। पाठान्तर और शोधपूर्ण परिशिष्ट भी दिये गये हैं। शोधार्थियों के लिए प्रस्तुत आगम अत्यन्त उपयोगी है।
विक्रम संवत् २०२१ में मुनि नथमलजी द्वारा सम्पादित भगवई सूत्र का मूल पाठ जैन विश्वभारती लाडनूं से प्रकाशित हुआ है। इस प्रति की यह विशेषता है कि इसमें जाव शब्द की पूर्ति की गई है। “सुत्तागमे" में मुनि पुफ्फभिक्खुजी ने ३२ आगमों के साथ भगवती का मूल पाठ भी प्रकाशित किया है। संस्कृतिरक्षकसंघ सैलाना से “अंग सुत्ताणि" के भागों में भी मूल रूप में भगवतीसूत्र प्रकाशित है।
भगवतीसूत्र का हिन्दी अनुवाद विवेचन के साथ पंडित घेवरचन्दजी बांठिया द्वारा सम्पादित ७ भाग “साधुमार्गी संस्कृति रक्षक संघ सैलाना" से प्रकाशित हुए। विवेचन संक्षिप्त में और सारपूर्ण है।
भगवतीसूत्र पर आचार्य श्री जवाहरलालजी म. सा. और सागरानन्द सरीश्वरजी के भी प्रवचनों के अनेक भाग प्रकाशित हुए हैं। पर वे प्रवचन सम्पूर्ण भगवतीसूत्र पर नहीं हैं। ___ एक लेखक ने भगवती सूत्र पर शोधप्रबन्ध भी अंग्रेजी में प्रकाशित किया है और तेरापंथी आचार्य श्री जीतमलजी ने भगवती की जोड़ लिखी थी, उसका भी प्रथम भाग लाडनूं से प्रकाशित हो चुका है। यह जोड़ भी राजस्थानी भाषा की एक मूल्यवान धरोहर है, जिसमें आगम जैसे गंभीर विषय को प्रचलित लोक भाषा एवं लोक रागिनियों के माध्यम से बहुत ही विद्वत्तापूर्ण किन्तु सुगम शैली में समझाया गया है।
स्वर्गीय युवाचार्य मधुकर मुनि जी म. की प्रेरणा से आगम बत्तीसी का प्रकाशन व्यावर से हुआ। उसमें उपप्रवर्तक अमर मुनि जी एवं सहसम्पादक श्रीचन्द सुराना ने मूलपाठ, अनुवाद और विवेचन भी किया है जो चार भागों में प्रकाशित है।
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