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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १०९ प्रदेशों-अवयवों का अखण्ड समूह है। इसमें केवल विशुद्ध आत्मद्रव्य की ही विवक्षा की गई हैं। पर्यायों की सत्ता होने पर भी उन्हें गौण कर दिया गया है। यह आत्मा का त्रैकालिक सत्य है, तथ्य है, जिसके कारण से आत्मद्रव्य अनात्म द्रव्य नहीं बनता। द्रव्य-आत्मा शुद्ध चेतना है। क्रोध-मान-माया-लोभ से रंजित होने पर आत्मा कषाय-आत्मा के रूप में पहचाना जाता है। आत्मा की जितनी भी प्रवृत्तियाँ हैं वे योग द्वारा होती हैं। इसलिए आत्मा की भी योग-आत्मा के नाम से पहचान कराई गई है। चेतना जब व्याप्त होती है तब वह उपयोग-आत्मा है। ज्ञानात्मक और दर्शनात्मक चेतना को क्रमशः ज्ञान-आत्मा और दर्शन-आत्मा कहा गया है। आत्मा की विशिष्ट संयममूलक अवस्था चारित्र-आत्मा के रूप में विश्रुत है। आत्मा की शक्ति वीर्य-आत्मा के रूप में जानी और पहचानी जाती है। ..
आत्मा के ये जो आठ प्रकार बताये हैं वे अपेक्षा दृष्टि से बतलाये गये हैं। आत्मा का जो पर्यायान्तरण होता है, वह केवल इन आठ बिन्दुओं तक ही सीमित नहीं है। आत्मा के जितने पर्यायान्तरण हैं उतनी ही आत्मायें हो सकती हैं। इस दृष्टि से आत्मा के अनंत भेद भी हो सकते हैं। प्रस्तुत आगम में इन आठों आत्माओं के प्रकारों का अल्पबहुत्व भी दिया है। जीव के चौदह भेद ___भगवतीसूत्र शतक २५, उद्देशक १ में संसारी जीव के चौदह भेद बताये हैं। एकेन्द्रिय जीव के चार भेद, पञ्चेन्द्रिय जीव के चार भेद और विकलेन्द्रिय जीव के छः भेद हैं। एकेन्द्रिय जीव के सूक्ष्म और बादर, पर्याप्त
और अपर्याप्त ये चार प्रकार हैं। सूक्ष्मनामकर्म के उदय से जिन जीवों का शरीर चर्मचक्षु से निहारा नहीं जा सकता वे सूक्ष्मएकेन्द्रिय जीव हैं। ये सूक्ष्म जीव चतुर्दश रज्जुप्रमाण सम्पूर्ण लोक में परिव्याप्त हैं। लोक में ऐसा कोई भी स्थान नहीं जहाँ पर ये जीव न हों। ये जीव इतने सूक्ष्म हैं कि पर्वत की कठोर चट्टान को चीरकर भी आर-पार हो जाते हैं। किसी के मारने से नहीं मरते। विश्व की कोई भी वस्तु उनका घात-प्रतिघात नहीं कर सकती। साधारण वनस्पति के सूक्ष्म जीवों को सूक्ष्मनिगोद भी कहते हैं। साधारण वनस्पतिकाय का शरीर निगोद कहलाता है। इस विश्व में असंख्य गोलक हैं। एक एक गोलक में असंख्यात निगोद हैं और एक एक निगोद में अनन्त जीव हैं। इनका आयुष्य अन्तर्मुहूर्त होता है।
बादमामकर्म के उदय से जिन जीवों का शरीर चर्मचक्षु से देखा जा सके, वे बादर-एकेन्द्रिय जीव हैं। बादर-एकेन्द्रिय जीव लोक के नियत क्षेत्र में
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