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स्वयंभू स्तोत्र ]
श्रीसंभवनाथजिन-स्तुति
(भुजंगप्रयात छन्द) तूही सौख्यकारी जग में नरों को। कुतृष्णा महाव्याधि पीडित जनों को। भयानक परम वैद्य है रोगहारा। यथा वैद्य ने दीन का रोग टारा ॥११॥
दशा जग अनित्य शरण है न कोई। अहं मम मई दोष मिथ्यात्व वोई॥ जरा-जन्म-मरण सदा दुख करे है। तुही टाल कर्म, परम शान्ति दे है ॥१२॥
बिजली सम चंचल सुख विषय का। करै वृद्धि तृष्णामई रोग जिय का। सदा दाह चित्त में कुतृष्णा बढ़ावे। जगत दुख भोगे, प्रभु हम बतावे ॥१३॥
जु है मोक्ष बन्ध व है हेतु उनका। बन्धा अर खुला जिय, फल जो छुटन का। प्रभू स्याद्वादी, तुम्हीं ठीक कहते । न एकांत मत के कभी पार लहते ॥१४॥
जहाँ इन्द्र भी हारता गुणकथन में। कहाँ शक्ति मेरी तुझी थुति करन में। तदपि भक्तिवश पुण्य यश गान करता। प्रभू दीजिए नित शिवानन्द परता ॥१५॥
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