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________________ एकीभाव स्तोत्र ] सुर-तिय गावैं सुजस सर्व गति ज्ञान - सरूपी । जो तुमको थिर होय नमैं भवि आनन्द-रूपी ॥ ताहि क्षेमपुर चलन वाट बाकी नहिं हो है । श्रुत के सुमरन माहिं सो न कबहूँ नर मोहै ॥२३ ॥ अतुल- चतुष्टय-रूप तुम्हें जो चित में धारै। आदरसौं तिहुँकाल माहिं जग - थुति विस्तारै ॥ सो सुक्रत शिवपंथभक्ति रचना कर पूरै । पंचकल्यानक ऋद्धि पाय निहचैं दुख चूरैं ॥ २४ ॥ अहो जगतपति पूज्य, अवधिज्ञानी मुनि हारे । तुम गुन कीर्तन माहिं, कौन हम मंद विचारे ॥ थुति - छलसों तुम - विषै देव आदर विस्तारे । शिव-सुख पूरनहार कलप - तरु यही हमारे ॥२५ ॥ वादिराज मुनितैं अनु वैयाकरणी सारे । वादिराज मुनितैं अनु तार्किक विद्यावारे ॥ वादिराज मुनितैं अनु हैं काव्यन के ज्ञाता । वादिराज मुनितैं अनु हैं भविजन के त्राता ॥२६॥ (दोहा) मूल अर्थ बहुविध कुसुम, भाषा सूत्र मँझार । भक्तिमाल 'भूधर' करी, धरो कंठ सुखकार ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only [ ७३ www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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