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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह आतम केवल ज्ञानमय, निश्चय दृष्टि निहार। सब विभाव परिणाममय, आस्रव भाव विडार ॥७॥ निज स्वरूप में लीनता, निश्चय संवर जानि। समिति गुप्ति संजय धरम, धरै पाप की हानि ॥८॥ संवर मय है आतमा, पूर्व कर्म झड़ जाँय। निज स्वरूप को पाय कर, लोक शिखर जब थाय॥९॥ लोक स्वरूप विचारिकें, आतम रूप निहारि। परमारथ व्यवहार गुणि, मिथ्याभाव निवारि ॥१०॥ बोधि आपका भाव है, निश्चय दुर्लभ नाहिं। भव में प्रापति कठिन है, यह व्यवहार कहाहिं ॥११॥ दर्श ज्ञानमय चेतना, आतम धर्म बखानि। दया क्षमादिक रतनत्रय, यामें गर्भित जानि ॥१२॥
कविवर भूधरदास राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार। मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी बार ॥१॥ दल बल देई देवता, मात पिता परिवार। मरती विरियाँ जीव को, कोऊ न राखन हार ॥२॥ दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा वश धनवान। कहूँ न सुख संसार में, सब जग देख्यों छान ॥३॥ आप अकेलो अवतरे, मरै अकेलो होय। यूँ कबहूँ इस जीव को, साथी सगा न कोय॥४॥ जहाँ देह अपनी नहीं, तहाँ न अपनों कोय। घर संपत्ति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय ॥५॥ दिपै चाम चादर मढ़ी, हाड़ पीजरा देह। भीतर या सम जगत में, और नहीं घिन गेह ॥६॥
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