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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
छहढाला (कविवर बुधजन कृत)
मङ्गलाचरण सर्व द्रव्य में सार, आतम को हितकार हैं। नमो ताहि चितधार, नित्य निरंजन जानके।
पहली ढाल आयु घटे तेरी दिन-रात, हो निश्चित रहो क्यों भ्रात। यौवन तन धन किंकर नारि, हैं सब जल बुदबुद उनहारि ॥१॥ पूरण आयु बढ़े छिन नाहिं, दिये कोटि धन तीरथ मांहि। इन्द्र चक्रपति हू क्या करें, आयु अन्त पर वे हू मरें ॥२॥ यों संसार असार महान, सार आप में आपा जान। सुख से दुख, दुख से सुख होय, समता चारों गति नहिं कोय॥३॥ अनंतकाल गति-गति दुख लह्यो,बाकी काल अनंतो कह्यो। सदा अकेला चेतन एक, तो माहीं गुण वसत अनेक ॥४॥ तू न किसी का तेरा न कोय, तेरा सुख दुख तोकों होय। याते तोकों तू उर धार, पर द्रव्यनतें ममत निवार ॥५॥ हाड़ मांस तन लिपटी चाम, रुधिर मूत्र-मल पूरित धाम।
सो भी थिर न रहे क्षय होय, याको तजे मिले शिव लोय ॥६॥ हित अनहित तन कुलजन माहि, खोटी बानि हरो क्यों नाहिं। याते पुद्गल-करमन जोग, प्रणवे दायक सुख-दुख रोग ॥७॥ पांचों इन्द्रिन के तज फैल, चित्त निरोध लाग शिव-गैल। तुझमें तेरी तू करि सैल, रहो कहा हो कोल्हू बैल ॥८॥ तज कषाय मन की चल चाल, ध्यावो अपनो रूप रसाल। झड़े कर्म-बंधन दुखदान, बहुरि प्रकाशै केवलज्ञान ॥९॥
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