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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह नगन निषध्या नारि मान-सन्मान गारि,
याचना अरति सब ग्यारह ठीक ठानिये। एकादश बाकी रही वेदनीय उदय से कही,
बाइस परीषह उदय ऐसे उर आनिये।
(अडिल्ल छंद) एक बार इन माहिं एक मुनि के कही। सब उनीस उत्कृष्ट उदय आवै सही॥ आसन शयन विहार दोय इन माहिं की। शीत उष्ण में एक तीन ये नाहिं की॥
मेरा सहज जीवन अहो चैतन्य आनन्दमय, सहज जीवन हमारा है। अनादि अनंत पर निरपेक्ष, ध्रुव जीवन हमारा है ।।टेक॥ हमारे में न कुछ पर का, हमारा भी नहीं पर में। द्रव्यदृष्टि हुई सच्ची, आज प्रत्यक्ष निहारा है॥१॥ अनंतों शक्तियाँ उछलें, सहज सुख ज्ञानमय विलसें। अहो प्रभुता परम पावन, वीर्य का भी न पारा है।।२।। नहीं जन्मूं नहीं मरता, नहीं घटता नहीं बढ़ता। अगुरुलघुरूप ध्रुव ज्ञायक, सहज जीवन हमारा है ।।३।। सहज ऐश्वर्य मय मुक्ति, अंनतों गुण मयी ऋद्धि। विलसती नित्य ही सिद्धि, सहज जीवन हमारा है॥४॥ किसी से कुछ नहीं लेना, किसी को कुछ नहीं देना। अहो निश्चिंत परमानन्दमय जीवन हमारा है ॥५॥ ज्ञानमय लोक है मेरा, ज्ञान ही रूप है मेरा। परम निर्दोष समतामय, ज्ञान जीवन हमारा है ॥६॥
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