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समाधिमरण पाठ ]
[२०३ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी॥४२॥ पुत्र चिलाती नामा मुनि को, बैरी ने तन घाता। मोटे-मोटे कीट पड़े तन, तापर निज गुण राता॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी॥४३॥ दण्डकनामा मुनि की देही, बाणन कर अरि भेदी। तापर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्म महारिपु छेदी॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४४॥ अभिनन्दन मुनि आदि पाँचसौ, घानी पेलि जु मारे। तो भी श्रीमुनि समताधारी, पूरव कर्म विचारे॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४५॥ चाणकमुनि गौघर के माहीं, मूंद अगिनि परजाल्यो। श्रीगुरु उर समभाव धारकै, अपनो रूप सम्हाल्यो। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी॥४६ ।। सातशतक मुनिवर दुख पायो, हथिनापुर में जानो। बलि ब्राह्मणकृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहिं मानो॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४७॥ लोहमयी आभूषण गढ़ के, ताते कर पहराये। पाँचों पाण्डव मुनि के तन में, तो भी नाहिं चिगाये।
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