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________________ समाधिमरण पाठ ] [ १९७ यों कलेश हिय धार मरण कर, चारों गति भरमायो। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरन ये, हिरदे में नहिं लायो ॥६॥ अब या अरज करूँ प्रभु सुनिये, मरण समय यह मांगों। रोग जनित पीड़ा मत होवो, अरु कषाय मत जागो। ये मुझ मरण समय दुखदाता, इन हर साता कीजै। जो समाधियुत मरण होय मुझ, अरु मिथ्यागद छीजै ॥७॥ यह तन सात कुधातुमई है, देखत ही घिन आवे। चामलपेटी ऊपर सोहै, भीतर विष्टा पावै ॥ अतिदुर्गन्ध अपावन सों, यह मूरख प्रीति बढ़ावै। देह विनाशी, जिय अविनाशी नित्य स्वरूप कहावै ॥८॥ यह तन जीर्ण कुटीसम आतम, यातै प्रीति न कीजै। नूतन महल मिलै जब भाई, तब यामें क्या छीजै। मृत्यु होन से हानि कौन है, याको भय मत लावो। समता से जो देह तजोगे, तो शुभतन तुम पावो॥९॥ मृत्यु मित्र उपकारी तेरो, इस अवसर के माहीं। जीरन तन से देत नयो यह, या सम साहू नाहीं। या सेती इस मृत्यु समय पर, उत्सव अति ही कीजै। क्लेशभाव को त्याग सयाने, समता भाव धरीजै॥१०॥ जो तुम पूरव पुण्य किये हैं, तिनको फल सुखदाई। मृत्यु मित्र बिन कौन दिखावै, स्वर्ग सम्पदा भाई॥ राग रोष को छोड़ सयाने, सात व्यसन दुखदाई। अन्त समय में समता धारो, परभव पंथ सहाई ॥११॥ कर्म महादुठ बैरी मेरो, तासेती दुख पावै। तन पिंजर में बंध कियो मोहि, यासों कौन छुड़ावै॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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