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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह श्री देशभूषण-कुलभूषण गाथा आओ अहो अराधना के मार्ग में आओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥टेक ॥ श्री देशभूषण-कुलभूषंण भगवान की गाथा। हो सबको ज्ञान विरागमय, आनन्द प्रदाता ।। दोनों भाई बचपन में ही गुरुकुल चले गये। सुध-बुध नहीं घर की कुछ अध्ययन में ही लग गये। गृह त्यागी लक्षण विद्यार्थी का चित्त में लाओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥१॥ साहित्य धर्म शास्त्र न्याय आदि पढ़ लिये। थोड़े समय में ही सहज विद्वान हो गये। पुरुषार्थ विशुद्धि विनय से ज्ञान विकसाता। गुरु तो निमित्त मात्र ज्ञान अन्तर से आता ॥ अन्तर्मुखी पुरुषार्थ से सद्ज्ञान को पाओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥२॥ कितने भव यों ही खो दिए निज ज्ञान के बिना। सुख लेश भी पाया नहीं, निज भान के बिना ।। पुण्योदय से वैभव पाये, अरु भोग भी कितने। उलझाया तड़प-तड़प दुख पाया, मोह वश इसने ॥ जिनवाणी का अभ्यास कर, अब होश में आओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥३॥ पढ़-लिख कर घर आने की थी तैयारी जिस समय। रे इन्द्रपुरी सम नगरी की शोभा थी उस समय। उल्लास का वातावरण चारों तरफ़ छाया। खो बैठे उपनी सुध-बुध ऐसा रंग वर्षाया।
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