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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह आचार्य श्री जिनसेन गाथा पूछ उठा अपनी माता से, इक बालक छह साल का। सरलस्वभावी परम चतुर था, जिसका रूप कमाल का टेक॥ माँ इस घर में कल-सी, गाने की आवाज नहीं है। ध्वनि क्यों बदली है क्या, गानेवाली बदल गयी है। माँ बोली बेटा इस घर में, कल एक पुत्र जन्मा था। ढोलक पर थी बजी बधाई, जिसका बँधा समा था। अरुण रूप जिसका विलोक, शरमाया रूप प्रवाल का। सरल स्वभावी परम चतुर था, जिसका रूप कमाल का ॥१॥ आज वही मर गया, इसी से सब घर के रोते हैं। मन में टूटी आशाओं का, व्यर्थ भार ढोते हैं। बालक बोला सहजभाव से, माँ क्यों पुत्र मरा है। कल जन्मा मर गया आज ही, ये तो खेल बुरा है। माँ बोली बेटा क्या अचरज, नहीं भरोसा काल का। सरल स्वभावी परम चतुर था, जिसका रूप कमाल का ॥२॥ बेटा सबको ही मरना है, जिसने जन्म लिया है। अनादि काल से इस प्राणी ने, जग में यही किया है। तो क्या माँ मुझको भी, मरना होगा कभी जहां से। माँ बोली चुप रह पगले, मत ऐसा बोल जुबाँ से। जग में बाँका बाल न हो, प्रभु कभी हमारे लाल का। सरल स्वभावी परम चतुर था, जिसका रूप कमाल का ॥३॥ माँ क्या कोई है उपाय, जिससे न जीव मर पावे। क्या दुनिया में ऐसा कोई, यह रहस्य बतलावे ।। माँ बोली इसके ज्ञाता, श्री वीरसेन स्वामी हैं। मिथ्यातम हर भानु आज के, युग में वे नामी हैं॥
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