SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमानन्द स्तोत्र ] हे जिन ! मायामद नाहिं धरे, तुम तत्त्व-ज्ञान से श्रेय करे । मोक्षेच्छु कामकर वच तेरा, व्रत-दमकर सुखकर मत तेरा ॥१४१ ॥ हे प्रभु! तव गमन महान हुआ, शममत रक्षक भय हान हुआ । जिनवर हस्ती मद स्तवन करै, गिरितट को खण्डित गमन करै ॥१४२॥ परमत मृदुवचन- रचित भी है, निज गुण संप्राप्ति रहित वह है । तव मत नय-भंग विभूषित है, सुसमन्तभद्र निर्दूषित है ॥१४३॥ Jain Education International हिन्दी अनुवाद परमानन्दयुक्त विकाररहित, रोगों से मुक्त और (निश्चयनय से ) अपने शरीर में ही विराजमान परमात्मा को ध्यानहीन पुरुष नहीं देखते हैं ॥१ ॥ अनन्त सुख से परिपूर्ण, ज्ञानरूपी अमृत से भरे हुए समुद्र के समान और अनन्त बल युक्त परमात्मा के स्वरूप का ही अवलोकन करना चाहिए ॥ २ ॥ [ १२९ विकारों से रहित, बाधाओं से मुक्त, सम्पूर्ण परिग्रहों से शून्य और परमानन्द विशिष्ट शुद्ध (केवलज्ञानरूप) चैतन्य ही (परमात्मा का) लक्षण जानना चाहिये ॥३ ॥ अपनी आत्मा की (उद्धार की) चिन्ता करना उत्तम चिन्ता है, शुभरागवश (दूसरे जीवों का भला करने की) चिन्ता करना मध्यम चिन्ता है, काम - भोग की चिन्ता करना अधम चिन्ता है और दूसरों का विचार करना अधम से भी अधम चिन्ता है ॥४ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy