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[१२७
स्वयंभू स्तोत्र ]
श्री महावीर जिन-स्तुति
(त्रोटक छन्द) तुम वीर धवल गुण कीर्ति धरे
जग में शोभै गुण आत्म भरे । जिम नभ शोभै शुचि चन्द्रग्रह,
सित कुन्द समं नक्षत्र ग्रहं ॥१३६ ॥
हे जिन ! तुम शासन की महिमा ,
भविभव नाशक कलिमांहि रमा । निज-ज्ञान-प्रभा अनक्षीण-विभव,
मलहर गणधर पण मैं मत तब ॥१३७॥
हे मुनि ! तुम मत स्याद्वाद अनघ,
दृष्टेष्ट विरोध बिना स्यात् वद। तुमसे प्रतिपक्षी बाध सहित,
नहिं स्याद्वाद है दोष सहित ॥१३८॥
हे जिन! सुर असुर तम्हें पूजें,
मिथ्यात्वी चित नहिं तुम पूजें । तुम लोकत्रय हित के कर्ता,
शुचि ज्ञानमई शिव-धर धर्ता ॥१३९ ॥
हे प्रभु! गुणभूषण सार धरे,
श्री सहित सभा जन हर्ष करे । तुम वपु कान्ती अति अनुपम है,
जगप्रिय शशि जीते रुचितम है ॥१४०॥
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