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स्वयंभू स्तोत्र ]
श्री पार्श्वनाथ जिन - स्तुति
जय पार्श्वनाथ अति धीर वीर,
नीले बादल बिजली गंभीर ।
अति उग्र वज्र जल पवन पात,
वैरी उपद्रुत नहिं ध्यान जात ॥१३१ ॥
धरणेन्द्र नाग निज फण प्रसार,
बिजलीवत् पीत सुरंग धार ।
श्री पार्श्व उपद्रुत छाय लीन,
जिम नग तडिदम्बुद सांझ कीन ॥ १३२ ॥
प्रभु ध्यानमयी असि तेजधार,
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कीना दुर्जय मोह प्रहार ।
त्रैलोक्य पूज्य अद्भुत अचिन्त्य,
पाया अर्हन्त पद आत्मचिन्त्य ॥१३३॥
प्रभु देख कर्म से रहित नाथ,
वनवासी तपसी आये साथ ।
निज श्रम असार लख आप चाह,
धरकर शरणा ली मोक्षराह ॥१३४ ||
श्री पार्श्व उग्र कुल नभ सुचन्द्र,, मिथ्यातम हर सत् ज्ञानचन्द्र ।
केवलज्ञानी सत् मग प्रकाश,
हूँ नमत सदा रख मोक्ष- आश ॥१३५ ॥
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