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[११५
स्वयंभू स्तोत्र ]
श्रीमल्लिनाथ जिन-स्तुति
(छन्द त्रोटक) जिन मल्लि महर्षि प्रकाश किया,
सब वस्तु सुबोध प्रत्यक्ष लिया। तब देव मनुज जगा प्राणि सभी,
कर जोड़ नमन करते सुखधी ॥१०६ ॥
जिनकी मूरत हैं कनकमयी,
प्रापरी भामण्डल रूपमयी। वाणी जिनकी सत् तत्वकथक,
स्यात्पदपूर्वं यतिगण रंजकः॥१०७॥
जिन आगे होई गलित माना,
एकान्ती त6 वाद थाना । विकसित सुवरण अम्बुज दल से,
भू भी हंसती प्रभु पद तल से॥१०८॥
जिन-चन्द्र वचन किरणें चमकें,
चहुँ ओर शिष्य यति-ग्रह दमकें। निज आत्मतीर्थ अति पावन है,
भावसागर-जन इक तारन है ॥१०९ ॥
जिन शुक्ल ध्यान तप अग्नि बली,
जिससे कर्मोघ अनन्त जली। जिन सिंह परम कृतकृत्य भये,
निःशल्य मल्लि हम शरण गये॥११०॥
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