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________________ स्वयंभू स्तोत्र ] श्री श्रेयांसनाथ जिन - स्तुति (छन्द मालिनी) जिनवर हितकारी वाक्य निर्बाधकारी, जगत जन सुहितकर मोक्ष- मारग प्रचारी । जिम मेघ रहित हो सूर्य एकी प्रकाशे, तिम तुम या जग में एक अद्भुत प्रकाशे ॥ ५१ ॥ है विधिषेध वस्तु और प्रतिषेध रूपं, जो जाने युगपत है प्रमाण स्वरूपं । कोई धर मुख्य अन्य को गौण करता, नय अंश प्रकाशी पुष्ट दृष्टान्त करता ॥५२॥ वक्ता इच्छा से मुख्य इक धर्म होता, तब अन्य विवक्षा बिन गौणता मांहि सोता । अरि मित्र उभय बिन एक जन शक्ति रखता, है तुझ मत द्वैतं, कार्य तब अर्थ करता ॥५३ ॥ जब होय विवादं सिद्ध दृष्टांत चलता, वह करता सिद्धि जब अनेकान्त चलता । एकान्त मतों में साधना होय नाहीं, तव मत है साँचा सर्व साधता तहां ही ॥५४॥ एकान्त मतों के चूर्ण कर्ता तिहारे, Jain Education International न्यायमई बाणं मोहरिपु जिन संहारे । तुम ही तीर्थङ्कर केवल ऐश्वर्य धारी, [ ९५ तातें तेरी ही भक्ति करनी विचारी ॥५५ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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