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वैराग्य पाठ संग्रह
देखो अहो एकत्व ही है सत्य शिव सुन्दर । प्रभु पंच भी देखो अहो इक आत्म के अन्दर ।। आत्मानुभव का मार्गही शिवपद का मार्ग है।। स्वाधीनता...॥१०॥
अपूर्व कार्य करूँगा। नरभव मिला है, मैं अपूर्व कार्य करूँगा।
पाया जिनशासन, अब भव का अभाव करूँगा। है मेरा निश्चय, है सम्यक् निश्चय। नरभव..........॥१॥
मिथ्यात्व वश अनादि काल से ही रुल रहा।
गति-गति में खाते ठोकरें मैं अब तो थक गया। जिनदर्शन से निजदर्शन करके मोह तनँगा। नरभव.....॥२॥
भव से रहित भगवान अंतर मांहिं दिखाया।
भगवान होने का सहज विश्वास जगाया ।। निज के आनंद से ही निज में तृप्त रहूँगा। नरभव.............॥३॥
इन्द्रिय सुखों की कामना अब है नहीं मन में।
उपसर्गों की परवाह नहीं जाकर बसूं वन में। निर्द्वन्द्व हूँ स्वभाव से निर्द्वन्द्व रहूँगा। नरभव...........॥४॥
देहादि से अति भिन्न हूँ न्यारा विभावों से।
गुण भेद से भी भिन्न हूँ न्यारा पर्यायों से। स्वाधीन निर्भय एकाकी अतितृप्त रहूँगा। नरभव........||५||
चैतन्य की अद्भुत शोभा ही भाई है मुझे।
अक्षय विभूति सिद्ध सम सुहाई है मुझे ।। झूठे प्रपंचों में फंस कर दुख अब न स|गा। नरभव........॥६॥
रे कर्म अपने ठाठ तूं दिखाता है किसे। प्रतिकूलताओं का भी भय बताता है किसे ।।
निरपेक्ष ज्ञाता रूप हूँ ज्ञाता ही रहूँगा। नरभव मिला है, मैं अपूर्व कार्य करूँगा ।।७।।
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