________________
77
वैराग्य पाठ संग्रह
ज्यों-ज्यों भोगे त्यों-त्यों तृष्णा ही बढ़ती है भाई। अग्नि की ईंधन से तृप्ति किसने है कर पाई ? निवृत्ति का ही मार्ग भवि स्वाधीन मार्ग है। स्वाधीनता का मार्ग तो निर्ग्रन्थ मार्ग है॥३॥ गोरखधन्धे की इक कड़ी को हाथ लगावे। फिर सुलझाना मुश्किल उलझता चक्र ही जावे॥ त्यों ही समस्यायें अनन्त जीवन है थोड़ा। सुलझाने की आकुलता में जीवन होवे पूरा ।। संक्लेश से मर कर अरे दुर्गति ही पाता है। सारा विकल्प उसका देखो व्यर्थ जाता है। मुक्ति का मार्ग तो अरे अन्तर का मार्ग है। स्वाधीनता...॥४॥ जैसे वाँसों के वृक्षों से छाया नहीं मिलती। स्त्री-पुत्रादिक से सुख की त्यों कल्पना झूठी। कितने खोजे देखो भौतिक विज्ञान ने साधन ? पर हो सके उनसे कभी क्या शान्ति का वेदन ? बाहर की दुनिया में नहीं भवि होड़ लगाओ। समझो चेतो आराधना के मार्ग में आओ। जिनमार्ग ही कल्याण का सत्यार्थ मार्ग है।। स्वाधीनता...||५|| आत्मन् ! निराशा अन्त में बाहर से मिलेगी। पछताने पर भी यह घड़ी नहीं हाथ लगेगी। पुण्योदय भी क्षणभंगुर है मत लखकर ललचाओ। पापोदय की प्रतिकूलताओं से न घबराओ॥ दुनिया की बातों में आकर नहीं चित्त भ्रमाना। नित तत्त्वों के अभ्यास में ही मन को लगाना।। नहीं विवाद का अहो निर्णय का मार्ग है।। स्वाधीनता...॥६॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org