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________________ वैराग्य पाठ संग्रह यदि ये दुःख इष्ट नहीं हैं, तो निज भाव सुधारो । निवृत्त हो विषय कषायों से, निजतत्त्व विचारो ॥ चक्री के वैभव भोग भी, सुख देने में असफल || देखो-देखो..॥७॥ पाकर किञ्चित् अनुकुलताएँ, व्यर्थ मत फूलो । हैं पराधीन आकुलतामय, नहीं मोह में भूलो ॥ ध्रुव चिदानन्दमय आत्मा, लक्ष्य करो अविरल || देखो-देखो..॥८॥ पुण्यों की भी तृष्णायतनता, अबाधित जानो । बन्धन तो बन्धन ही, उसे शिवमार्ग मत मानो ॥ ज्यों अंक बिन बिन्दी त्यों स्वानुभव बिन जीवन निष्फल | देखो-देखो..॥९॥ अब योग तो सब ही मिले, पुरुषार्थ जगाओ। अन्तर्मुख हो बस मात्र, जाननहार जनाओ ॥ सन्तुष्ट निज में ही रहो, ब्रह्मचर्य हो सफल | देखो-देखो..॥ १० ॥ सब प्राप्य निज में ही अहो, स्थिरता उर लाओ। तुम नाम पर व्यवहार के, बाहर न भरमाओ | निर्ग्रन्थ हो निर्द्वन्द हो ध्याओ, निजपद अविचल ॥ देखो-देखो.. ॥११॥ 13 निज में ही सावधान ज्ञानी, साधु जो रहते । वे ही जग के कल्याण में, निमित्त हैं होते ।। ध्याओ ध्याओ शुद्धात्मा, पर की चिन्ता निष्फल | देखो-देखो.. ॥१२॥ निर्बन्ध के इस पंथ में, जोड़ो नहीं सम्बन्ध | विचरो एकाकी निष्पृही, निर्भय सहज निशंक ॥ निर्मूढ़ हो निर्मोही हो, पाओ शिवपद अविचल || देखो-देखो.. ॥१३॥ मै कौन हूँ ऐसा विचार न करे और अन्य सभी कार्य करे तो प्रमादी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003171
Book TitleVairagya Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
PublisherKundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
Publication Year2010
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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