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वैराग्य पाठ संग्रह उल्लास का वातावरण चारों तरफ छाया। खो बैठे अपनी सुध-बुध ऐसा रंग वर्षाया॥ हो मूढ़ राग-रंग में, ना निज को भुलाओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ॥४॥ निज कन्यायें लेकर, अनेक राजा आये थे। देखा नहीं सुनकर ही वे, मन में हरषाये थे॥ सपने संजोये थीं कन्यायें, उनको वरने की। उनमें भी होड़ लगी थी, उनके चित्त हरने की। पर होनहार सो ही होवे विकल्प मत लाओ॥ आनन्द... ||५|| आते हुए उन राजपुत्रों को दिखी कमला। उल्लास से जिसकी दिखी तन कान्ति अति विमला॥ कर्मोदय वश दोनों ही उस पर लुब्ध थे हुए। मन में विवाह की उससे ही लालसा लिए। लखकर विचित्रता अरे सचेत हो जाओ॥ आनन्द... ॥६॥ इक कन्या को दो चाहते, संघर्ष हो गया। दोनों के भ्रातृप्रेम का भी ह्रास हो गया। धिक्कार इन्द्रिय भोगों को जो सुख के हैं घातक। रे भासते हैं मूढ़ को ही सुख प्रदायक। कर तत्त्व का विचार श्वानवृत्ति नशाओ॥आनन्द... ॥७॥ इच्छाओं की तो पूर्ति सम्भव ही नहीं होती। मिथ्या पर-लक्ष्यी वृत्ति तो निजज्ञान ही खोती। सुख का कारण इच्छाओं का अभाव ही जानो। उसका उपाय आत्मसुख की भावना मानो।। भवि भेदज्ञान करके आत्मभावना भाओ॥ आनन्द... ||८|| आते देखा भ्राताओं को वह कन्या हरषायी। भाई-भाई कहती हुई, नजदीक में आयी॥
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