________________
112
वैराग्य पाठ संग्रह तत्क्षण सब दौड़े आये, नृप क्रोध किया अतिभारी। कुछ न्याय अन्याय न जाना, शूली की सजा सुना दी। जिनकी पावन दृढ़ता से, कुटिला नारी भी हारी ॥१३॥ शूली के तख्ते पर थे, बैठे वे धर्म धुरन्धर । किंचित् घबड़ाहट नाहीं, डूबे समता के अन्दर ॥ तब नभ से पुष्प बरसते, सिंहासन रच गया भारी। इन्द्रादिक स्तुति करते, जय-जय बोलें नर-नारी ।। जिनकी ...॥१४॥ चम्पापुरि धन्य हुयी थी, अरु वृषभदत्त यश पाया। जिनके सुत सेठ सुदर्शन, यह चमत्कार दिखलाया। पिछले ग्वाले के भव में, श्रद्धा जिनधर्म की धारी। फिर श्रेष्ठी सुत होकर यों, महिमा पाई सुखकारी ।। जिनकी ...॥१५॥ चरणों में नत हो भूपति, पछताते क्षमा कराते। तब सेठ सुदर्शन बोले, हम दीक्षा ले वन जाते॥ नहीं दोष किसी का कुछ भी, कर्मों की लीला न्यारी। कर्मों का नाश करेंगे, निर्ग्रन्थ दशा धर प्यारी । जिनकी ...॥१६।। उत्तम सुयोग पाकर भी, मैं समय न व्यर्थ गँवाऊँ। भोगों के दुख बहु पाये, अब इनमें नाहिं फँसाऊँ।। नश्वर अशरण जगभर में, शुद्धातम ही सुखकारी। निज में ही तृप्ति पाऊँ, संकल्प जगा हितकारी। जिनकी ...॥१७॥ मुनि हो तप करते-करते, पटना नगरी में आये। उपसर्ग वहाँ भी भारी, पर किंचित् नहीं चिगाये। फिर शुक्लध्यान के द्वारा, कर्मों की धूल उड़ा दी। प्रभु पौष शुक्ल पंचमि को, निर्वाण गये सुखकारी। जिनकी ...॥१८॥ है निमित्त अकिंचित्कर ही, किंचित् नहिं सुख-दुख दाता। निज की सम्यक् दृढ़ता से, मिटती है सर्व असाता॥ प्रभु यही भावना मेरी, तुमसा पुरुषार्थ सु-धारी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org