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वैराग्य पाठ संग्रह दासी ने तुरन्त बताया, जो सेठ सुदर्शन नामी। उनके ही हैं सुत नारी, सुनकर कपिला मुस्कानी। है सेठ नपुंसक कैसे फिर वह नारी सुत धारी। हँस कर रानी तब बोली, धनि सेठ शील व्रतधारी ।। जिनकी ...॥७॥ चाहा था उन्हें फंसाना, ठग गयी स्वयं ही तू तो। मूर्खा तू समझ न पाई, तत्काल सेठ युक्ति को। मैं तो मूर्खा ही ठहरी, बोली झंझला बेचारी। वश में करके दिखलाओ, तुम रूप बुद्धि बलधारी। जिनकी ...॥८॥ रानी बातों में आयी, बुद्धि विवेक विसरानी। दूती को लालच देकर, तब सेठ मिलन की ठानी॥ धर्मात्मा सेठ सुदर्शन, धर नग्न दशा अविकारी। मरघट में ध्यान लगाते, चौदश निशि धीरज धारी। जिनकी ...॥९॥ दूती ने जाल बिछाया, नर मूर्ति तुरत बनवायी। कंधे पर रखकर उसको, महलों के द्वारे आयी। ज्यों द्वारपाल ने रोका, दूती ने मूर्ति गिरादी। व्रत टूट गया रानी का, तोहि सजा दिलाऊँ भारी।। जिनकी ...॥१०॥ यों द्वारपाल वश कीने, तब उठा सेठ को लाई। बैठाया जाय पलंग पर, रानी अति ही हरषाई॥ भारी चेष्टायें कीनी, यों रात गुजर गयी सारी। पर ध्यान मग्न थे श्रेष्ठी, उपसर्ग समझ अतिभारी। जिनकी ...॥११।। ध्रुव का अवलम्बन जिनके, विचलित नहीं होते जग में। उपसर्ग परीषह आवें, पर सतत बढ़ें शिवमग में। है आत्मज्ञान की महिमा, हो अद्भुत समता धारी। उनकी गरिमा वर्णन में, इन्द्रों की बुद्धि हारी ।। जिनकी ...॥१२।। जब विफल स्वयं को जाना, रानी षडयंत्र रचाया। बिखराकर वस्त्राभूषण, तब उसने शोर मचाया।
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