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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह निग्रंथ हो, निर्द्वन्द हो, प्रभु मग्न निज में ही हुए। प्रभुता सहज प्रगटी, अलौकिक तृप्त निज में ही हुए।
श्री पार्श्वनाथ भगवान नाग-नागिन दग्ध लखकर, करुण हो संबोधिया। धरणेन्द्र पद्मावती हुए, वैराग्य प्रभु तुम भी लिया ।। निग्रंथ हो आत्मार्थ साधा, हो गये परमात्मा। जग को बताया पार्श्वप्रभु, परमात्मा सब आत्मा।
श्री महावीर भगवान जीता सुभट दुर्मोह सा प्रभु, मदन को निर्मद किया। जग से विरत हो आत्मरत, परमात्म पद को पा लिया। तत्त्वोपदेश दिया प्रभो ! आदेय शुद्धात्मा कहा। हे वीर जिनवर तुम प्रसाद सु, सहज निजपद हम लहा।
मंगलाचरण
(दोहा) नेता मुक्तिमार्ग के, साँचे तारणहार । कर्म कलंक विनष्ट कर, हुए विश्व ज्ञातार ।। तीर्थंकर चौबीस वर, मंगलमय अविकार। भक्तिभाव से पूजते, मन में हर्ष अपार ।। पूजों समुच्चय रूप से, अरु प्रत्येक-प्रत्येक। अन्तर माँहिं निहारता, मैं अनेक में एक॥ निजानन्द निज में लहूँ, भोगों की नहिं चाह। पाऊँ मैं भी आप सम, रत्नत्रय की राह ।। जब तक नहीं निग्रंथ पद, प्रगटे मंगलरूप। जिनवर पूजन के निमित्त, भाऊँ शुद्ध चिद्रूप ।। मुक्तिमार्गकी सुविधि ही, जान प्रशस्त विधान । भक्ति भाव से पूजते, करूँ भेद-विज्ञान ।।
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि॥
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