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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
प्राक पुष्पों से जिनश्रुत की पूज रचाऊँ । कामवासना मेदूँ, निर्मल शील सु पाऊँ ॥ षट्खण्डागम आदि श्रुतों की पूजा करता । निर्ज - पर भेद विज्ञान धार निज दृष्टि धरता ॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । जिनश्रुत पाकर अनुभव रस में तृप्त रहूँ मैं ।
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कर अर्पण नैवेद्य, क्षुधादिक दोष नभूँ मैं । षट्... ॥
ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । जिनवाणी उपकार हृदय से नहीं भुलाऊँ ।
दीपक सम्यग्ज्ञान जलाकर मोह नशाऊँ ॥ षट्... ॥
ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । कर्मबन्ध से भिन्न आत्मा, नित ही ध्याऊँ । तप की शोधक अग्नि जलाकर कर्म नशाऊँ ॥ षट्खण्डागम आदि श्रुतों की पूजा करता । निज - पर भेद विज्ञान धार निज दृष्टि धरता ॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि. स्वाहा । जिनवाणी से सहज मुक्त आतम पहचानूँ । निज में हो संतुष्ट कर्म फल वांछा त्यागूँ॥षट्...॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि. स्वाहा । द्रव्य-भावमय अर्घ्य चढ़ाकर श्रुतगुण गाऊँ ।
जिनवाणी की कर प्रभावना अति हर्षाऊँ ॥ षट्... ॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. स्वाहा ।
जयमाला
(सोरठा)
भ्रमतम नाशनहार, स्याद्वादमय जैनश्रुत । अभ्यासो अविकार, गुण गाऊँ आनन्द से ॥
(मत्त सवैया)
श्रुत परम्परा का ह्रास देख गुरुवर को सहज विकल्प हुआ। जिनवाणी को लिपिबद्ध कराने का उनको शुभ भाव हुआ ।
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