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________________ आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह निजज्ञान भानु का उदय हुआ, आलोक सहज ही छाया है। चिरमोह महातम हे स्वामी, इस क्षण ही सहज विलाया है। श्री देव-शास्त्र-गुरुवर सदैव, मम परिणति में आदर्श रहो। ज्ञायक में ही स्थिरता हो, निज भाव सदा मंगलमय हो। ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यः मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा। निज द्रव्य-भाव-नोकर्म शून्य, चैतन्य प्रभु जब से देखा। शुद्ध परिणति प्रकट हुई, मिटती परभावों की रेखा ॥श्री देव..॥ ॐह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्योऽष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। अहो पूर्ण निज वैभव देखा, नहीं कामना शेष रही। निर्वाञ्छक हो गया सहज मैं, निज में ही अब मुक्ति दिखी॥श्री देव..॥ ॐह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। निज से उत्तम दिखे न कुछ भी, पाई निज अनर्घ्य माया। निज में ही अब हुआ समर्पण, ज्ञानानन्द प्रकट पाया ॥श्री देव..॥ ॐह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्योऽनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (दोहा) ज्ञानमात्र परमात्मा, परम प्रसिद्ध कराय। धन्य आज मैं हो गया, निज स्वरूप को पाय॥ (हरिगीत-छन्द) चैतन्य में ही मग्न हो, चैतन्य दरशाते अहो। निर्दोष श्री सर्वज्ञ प्रभुवर, जगत्साक्षी हो विभो ।। सच्चे प्रणेता धर्म के, शिवमार्ग प्रकटाया प्रभो। कल्याण वाँछक भविजनों, के आप ही आदर्श हो। शिवमार्ग पाया आप से, भवि पा रहे अरु पायेंगे। स्वाराधना से आप सम ही, हुए हो रहे होयेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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