________________
235
आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री चौबीस तीर्थंकर भगवन्तों को अर्घ्य मिट जाये मेरा जन्म-मरण, सन्ताप न हो अक्षय पद हो , निष्काम रहूँ न विभुक्षा हो, न मोह न यह विधि भयप्रद हो। बन जाऊँ जीवन मुक्त नाथ, यह अर्घ्य चढ़ा करता अर्चन, ऋषभादि चतुर्विंशति जिनवर, आदर्श रहो मेरे प्रतिक्षण । ॐह्रीं श्री वृषभादिवीरांतेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री मानस्तम्भजी को अर्घ्य देखत मान गले मानी का, मान स्तम्भ सार्थक नाम । चतुर्मुखी जिनबिम्ब विराजे, भाव सहित मैं करूँ प्रणाम । द्रव्य-भावमय अर्घ्य चढ़ाकर, भाऊँ भावना मंगलकार ।
ज्ञानमयी निर्मान अवस्था, हे जिनवर पाऊँ अविकार ॥ ॐह्रीं श्री मानस्तम्भेषु विराजमान जिनबिम्बेभ्यो अयं निर्वपामीति स्वाहा ।
कृत्रिमाकृत्रिम चैत्यालयों को अर्घ्य भूत भविष्यत् वर्तमान की, तीस चौबीसी मैं ध्याऊँ।
चैत्य चैत्यालय कृत्रिमाकृत्रिम, तीनलोक के मन लाऊँ। ॐ ह्रीं श्री त्रिकालसम्बन्धी तीस चौबीसी, त्रिलोकसम्बन्धी कृत्रिमाकृत्रिम चैत्यचैत्यालयेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
श्री अकृत्रिम चैत्य-चैत्यालयों को अर्घ्य तीन लोक में अकृत्रिम चैत्यालय, अरु जिनबिम्ब महा । जिनके दर्शन से निज दर्शन, होते हैं सुखदाय अहा ॥ उन सब अकृत्रिम जिनबिम्बों, को मैं अर्घ चढ़ाता हूँ। निज अकृत्रिम भाव लखू, बस यही भावना भाता हूँ ॥ ॐ ह्रीं श्री अकृत्रिम चैत्य-चैत्यालय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री कृत्रिम जिनबिम्बों को अर्घ्य जिस प्रकार पाषाण खण्ड में, शिल्पी बिम्ब प्रगटाता है ! मंत्र विधि से होय प्रतिष्ठा, त्रिजग पूज्य बन जाता है !!
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org