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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
(शास्त्र-स्तवन) स्याद्वादमयी तेरी वाणी, शुभनय के झरने झरते हैं। उस पावन नौका पर लाखों, प्राणी भव-वारिधि तिरते हैं।
(गुरु-स्तवन) हे गुरुवर शाश्वत सुखदर्शक, यह नग्नस्वरूप तुम्हारा है। जग की नश्वरता का सच्चा, दिग्दर्शन करनेवाला है। जब जग विषयों में रच-पच कर, गाफिल निद्रा में सोता हो। अथवा वह शिव के निष्कटंक, पथ में विषकंटक बोता हो। हो अर्द्ध निशा का सन्नाटा, वन में वनचारी चरते हों। तब शान्त निराकुल मानस तुम, तत्त्वों का चिंतन करते हो॥ करते तप शैल नदी तट पर, तरुतल वर्षा की झड़ियों में। समता रसपान किया करते, सुख-दुख दोनों की घड़ियों में। अन्तर ज्वाला हरती वाणी, मानों झड़ती हों फुलझड़ियाँ । भवबन्धन तड़-तड़ टूट पड़ें, खिल जावें अन्तर की कलियाँ ।। तुम-सा दानी क्या कोई हो, जग को दे दी जग की निधियाँ । दिन रात लुटाया करते हो, सम-शम की अविनश्वर मणियाँ ।। ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्योऽनर्यपदप्राप्तये जयमालायँ नि. स्वाहा।
हे निर्मल देव! तुम्हें प्रणाम, हे ज्ञानदीप आगम! प्रणाम । हे शान्ति-त्याग के मूर्तिमान ! शिवपथ-पंथी गुरुवर! प्रणाम ।।
॥पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥
उजालों का जन्म अधेरे की कोख में ही हुआ है। संन्यासी
कोई नहीं होता, केवल न्यास बदलता है।
अपना बुरा करनेवाले को भुला देना उतना ही महत्वपूर्ण है,
जितना किसी की भलाई करके भूल जाना।
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