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________________ 193 आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह मेरा सहज जीवन अहो चैतन्य आनन्दमय, सहज जीवन हमारा है। अनादि अनंत पर निरपेक्ष, ध्रुव जीवन हमारा है ॥ टेक ॥ हमारे में न कुछ पर का, हमारा भी नहीं पर में। द्रव्य-दृष्टि हुई सच्ची, आज प्रत्यक्ष निहारा है ॥ १ ॥ अनंतों शक्तियाँ उछलें, सहज सुख ज्ञानमय विलसें । अहो प्रभुता परम पावन, वीर्य का भी न पारा है ॥२॥ नहीं जन्मूँ नहीं मरता, नहीं घटता नहीं बढ़ता । अगुरूलघु रूप ध्रुव ज्ञायक, सहज जीवन हमारा है || ३ || सहज ऐश्वर्य मय मुक्ति, अनंतों गुण मयी ऋद्धि । विलसती नित्य ही सिद्धि, सहज जीवन हमारा है ॥४॥ किसी से कुछ नहीं लेना, किसी को कुछ नहीं देना । अहो निश्चिंत परमानन्दमय जीवन हमारा है ॥५॥ ज्ञानमय लोक है मेरा, ज्ञान ही रूप है मेरा । परम निर्दोष समता मय, ज्ञान जीवन हमारा है || ६ || मुक्ति में व्यक्त है जैसा, यहाँ अव्यक्त है वैसा । अबद्धस्पृष्ट अनन्य, नियत जीवन हमारा है ॥७॥ सदा ही है न होता है, न जिसमें कुछ भी होता है। अहो उत्पाद व्यय निरपेक्ष, ध्रुव जीवन हमारा है ॥८॥ विनाशी बाह्य जीवन की, आज ममता तजी झूठी । रहे चाहे अभी जाये, सहज जीवन हमारा है ॥ ९ ॥ नहीं परवाह अब जग की, नहीं है चाह शिवपद की । अहो परिपूर्ण निष्पृह ज्ञानमय जीवन हमारा है ॥ १०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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