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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह उद्योतस्वरूपं, शुद्धचिद्रूपं, प्रभु प्रसाद प्रत्यक्ष भयो।
अज्ञान नशायो, समसुख पायो, जाननहार जनाय रह्यो॥ इन्द्रादि...॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । विच कर्ममहावन, भटक्यो भगवन्, शिवमारग तुमडिंग पायो। तप अग्नि जलाऊँ, कर्म नशाऊँ, स्वर्णिम अवसर अब आयो॥ इन्द्रादि...॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
रागादि विकारं, दुखदातारं, त्याग सहज निजपद ध्याऊँ। साधू हो निर्भय, शुद्धरत्नत्रय, अविनाशी शिवफल पाऊँ॥ इन्द्रादि...॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
करि अर्घ अनूपं, हे शिवभूपं, द्रव्य-भावमय भक्ति करूँ। तज सर्व-उपाधि, बोधि-समाधि पाऊँ निज में केलि करूँ॥इन्द्रादि...॥ ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक अर्घ्य
(सरसी) नगरी सजी रत्न वर्षाये, सोलह स्वप्ने देखे मात । षष्ठमि सुदी आषाढ़ प्रभू का, गर्भ कल्याणक हुआ विख्यात॥ भावसहित प्रभु करूँ अर्चना, शुद्धातम कल्याणस्वरूप।
आनन्द सहित आपसम ध्यावें, पावें अविचल बोध अनूप॥ ॐ ह्रीं आषाढशुक्लषष्ठम्यांगर्भमंगलमंडिताय श्रीमहावीर-जिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा। नरकों में भी कुछ क्षण को तो, साता का संचार हुआ।
चैत सुदी तेरस को प्रभुवर, जन्म जगत सुखकार हुआ।भाव...।। ॐ ह्रींचैत्रशुक्लत्रयोदश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीमहावीर-जिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा।
जीरण तृण-सम विषयभोग तज, बाल ब्रह्मचारी हो नाथ। दशमी मगसिर कृष्णा के दिन जिनदीक्षा धारी जिननाथ ॥भाव...॥ ॐ ह्रींमगसिरकृष्णदशम्यांतपोमंगलमंडिताय श्रीमहावीर-जिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा। दशमी सुदि बैशाख तिथी को, आत्मलीन हो घाति विनाश।
धन्य-धन्य महावीर प्रभु को, हुआ सु केवलज्ञान प्रकाश भाव...॥ ॐ ह्रीं बैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीमहावीर-जिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा।
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