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________________ 179 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह जब नाग और नागिन तुम्हारे वचन उर धर सुर भये। जो आपकी भक्ति करें वे दास उनके भी भये ।। वे पुण्यशाली भक्त जन की सहज बाधा को हरें। आनन्द से पूजा करें वाँछा न पूजा की करें। हे प्रभो तव नासाग्रदृष्टि यह बताती है हमें। सुख आत्मा में प्राप्त कर लें व्यर्थ बाहर में भ्रमें। मैं आप सम निज आत्म लखकर आत्म में थिरता धरूँ। अरु आशा-तृष्णा से रहित अनुपम अतीन्द्रिय सुख भरूँ। जब तक नहीं यह दशा होती आपकी मुद्रा लखू। जिनवचन का चिन्तन करूँ व्रत शील संयम रस चलूँ। सम्यक्त्व को नित दृढ़ करूँ पापादि को नित परिहरूँ। शुभराग को भी हेय जानूँ लक्ष्य उसका नहिं करूँ। स्मरण ज्ञायक का सदा विस्मरण पुद्गल का करूँ। मैं निराकुल निजपद लहूँ प्रभु ! अन्य कुछ भी नहिं चहूँ। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालायँ निर्वपामीति स्वाहा । (दोहा) पूज्य ज्ञान वैराग्य है, पूजक श्रद्धावान । पूजा गुण अनुराग अरु, फल है सुख अम्लान ।। ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ एक भव के थोड़े से सुख के लिये अनंत भवों के अनंत दु:खों को नहीं बढ़ाने का प्रयत्न सत्पुरुष करते हैं। हजारों उपदेश वचन और कथन सुनने की अपेक्षा उनमें से थोड़े भी वचनों का विचार करना विशेष कल्याणकारी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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