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________________ 178 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह पंचकल्याणक अर्घ्य (दोहा) दूज कृष्ण वैशाख को, प्राणत स्वर्ग विहाय। वामा माता उर वसे, पू→ शिव सुखदाय॥ ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णद्वितीयायां गर्भमंगलमण्डिताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। पौष कृष्ण एकादशी, सुतिथि महा सुखकार। अन्तिम जन्म लियो प्रभु, इन्द्र कियो जयकार ॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णएकादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं नि. पौष कृष्ण एकादशी, बारह भावन भाय। केशलोंच करके प्रभु, धरो योग शिवदाय॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णएकादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। शुक्लध्यान में होय थिर, जीत उपसर्ग महान । चैत्र कृष्ण शुभ चौथ को, पायो केवलज्ञान ।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णचर्तुर्थ्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं नि. श्रावण शुक्ल सु सप्तमी, पायो पद निर्वाण । सम्मेदाचल विदित है, तव निर्वाण सुथान । ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लसप्तम्याम् मोक्षमंगलमंडिताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं जयमाला (तर्ज-प्रभु पतित पावन में...) हे पार्श्व प्रभु मैं शरण आयो दर्शकर अति सुख लियो। चिन्ता सभी मिट गयी मेरी कार्य सब पूरण भयो । चिन्तामणी चिन्तत मिले तरु कल्प माँगे देत हैं। तुम पूजते सब पाप भागें सहज सब सुख हेत हैं। हे वीतरागी नाथ ! तुमको भी सरागी मानकर। माँगें अज्ञानी भोग वैभव जगत में सुख जानकर ॥ तव भक्त वाँछा और शंका आदि दोषों रहित हैं। वे पुण्य को भी होम करते भोग फिर क्यों चहत हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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