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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
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मोह नाशा सम्यक्ज्ञान से, क्या प्रयोजन दीपक भानु परम आनन्दमय शिवदायकं, जजें शीतलजिन जगनायकं ॥ ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा । परम आतम ध्यान लगायिके, लहें निजपद कर्म नशायिके । परम आनन्दमय शिवदायकं, जजें शीतलजिन जगनायकं ॥ ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविनाशनाय धूपं नि. स्वाहा । मार्ग प्रभुवर का अहो हम अनुसरें, पाप-पुण्य नशें शिवफल लहें । परम आनन्दमय शिवदायकं, जजें शीतलजिन जगनायकं ॥ ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
धरें अर्घ्य जिनेश्वर चरण में, तज प्रपंच सु आये शरण में । परम आनन्दमय शिवदायकं, जजें शीतलजिन जगनायकं ॥ ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. स्वाहा । पंचकल्याणक अर्घ्य (चौपाई)
चैत्र कृष्ण अष्टमि दिन देव, अच्युत से च्युत हो स्वयमेव । मात सुनन्दा उर अवतरे, गर्भ कल्याणक सुख विस्तरे ॥
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्ण अष्टम्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय गर्भकल्याणप्राप्ताय अर्घ्यं नि. स्वाहा । माघ कृष्ण द्वादश जिनराय, अन्तिम जन्म भयो सुखदाय । जन्मकल्याणक पूजा करें, यही भाव फिर जन्म न धरें ॥
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ॐ ह्रीं माघकृष्णद्वादश्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणप्राप्ताय अर्घ्यं नि. स्वाहा । वैभव यौवन इन्द्रिय-भोग, इन्द्रधनुष सम लखे मनोग । माघ कृष्ण द्वादश दिन नाथ, धारी दीक्षा नावें माथ ॥
ॐ ह्रीं माघकृष्णद्वादश्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणप्राप्ताय अर्घ्यं नि. स्वाहा । स्वामी पौष चतुर्दशि श्याम, केवलज्ञान लह्यो अभिराम । शोभें समवशरण के माँहिं, दर्शन से भवि पाप नशाहिं ॥
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ॐ ह्रीं पौषकृष्णचतुर्दश्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणप्राप्ताय अर्घ्यं नि. स्वाहा । अष्टमि सितअसौज भगवान, पायो अविचल पद निर्वाण । भाव सहित हम शीश नमांय, ज्ञाता दृष्टा रह शिव पांय । ॐ ह्रीं अश्विनशुक्ल अष्टम्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणप्राप्ताय अर्घ्यं नि. ।
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