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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह संन्यास पूर्वक देह तजकर, हुए प्रभु अहमिन्द्र थे। थी शुक्ल-लेश्या भाव निर्मल, वासना से शून्य थे। छह माह आयु शेष थी, तब रत्न धारा वरसती। सुन्दर हुई सम्पन्न अति, साकेत नगरी हरषती ।। सोलह सु सपने मात देखे, गर्भ में आये प्रभो। कल्याण देवों ने मनाया, सभी हर्षाये अहो॥ फिर जन्मते अभिषेक इन्द्रों ने, सुमेरू पर किया।
थे सहज वैरागी, नहीं राज्यादि करते रस लिया। नक्षत्र टूटा देखते, वैराग्यमय चिन्तन किया। अनुमोदना लौकान्तिकों की पाय हर्षाया हिया। आनन्दमय निर्ग्रन्थ दीक्षा धरी प्रभु आनन्द से। आराधना करते प्रभो, छूटे करम के फन्द से॥ होकर स्वयंभू देव, मुक्ति-मार्ग दर्शाया सहज । पुनि घाति शेष अघातिया, ध्रुव सिद्धपद पाया सहज ॥ पूजा करूँ प्रभु आपकी, निष्काम हो निष्पाप हो। परिणति स्वयं में लीन हो, आदर्श जग में आप हो॥ उच्छिष्ट सम छोड़े हुए, भव भोग इष्ट नहीं मुझे। मम नित्य ज्ञानानन्दमय प्रभु, परम इष्ट मिला मुझे ॥ सन्तुष्ट हूँ अति तृप्त हूँ, रतिवन्त हूँ निज भाव में।
जयवन्त हो श्री जैनशासन, नमन सहजस्वभाव में। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्य नि. स्वाहा।
(दोहा) प्रभुवर चरण प्रसाद से, विजित होंय सब कर्म। स्वाभाविक प्रभुता खिले, रहूँ सदा निष्कर्म ।
॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥
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