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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
पारमार्थिक उपकार का वर्णन करते हैं। इससे पाठकों को भी निश्चय भक्ति प्रगट करने की प्रेरणा मिलती है।
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२. अनेक स्थलों पर भगवान को चढ़ाई जानेवाली सामग्री का भी निश्चय फल क्या होता है - इस तथ्य का उल्लेख किया गया है। यथा:श्री देव - शास्त्र - गुरु पूजन के जल एवं फल के छन्द में (अ) शाश्वत अस्तित्व स्वयं का लखकर जन्म-मरणभय दूर हुआ । (ब) निर्वाञ्छक हो गया सहज मैं, निज में ही अब मुक्ति दिखी।
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३. भक्ति के सहज प्रवाह में वीतरागी देव के नाम पर भी चिरकालीन मिथ्या मान्यताओं को चुनौती देते हुए पाठक की भाव भूमि से उन्हें नष्ट करने का अनुपम प्रयोग पार्श्वनाथ पूजन में सहज बन गया है।
प्रायः जगत लौकिक सुख संपत्ति की कामना से पार्श्वनाथ भगवान की पूजन करता है ।
इस अज्ञान को निम्न पंक्तियों में सहज प्रक्षालित कर दिया गया है :तन-मन-धन निज से भिन्न मान, लौकिक वाँछा नहिं लेश रखूँ । तुम जैसा वैभव पाने को, तव निर्मल चरण-कमल अर्चं ॥ इसी प्रकार नाग-नागिन प्रकरण पर भी सन्तुलित एवं सटीक विचार निम्न पंक्तियों में व्यक्त हुए हैं :
जब नाग और नागिन तुम्हारे वचन उर धर सुर भये । जो आपकी भक्ति करें वे दास उनके भी भये ॥ वे पुण्यशाली भक्त जन की सहज बाधा को हरें । आनन्द से पूजा करें वाँछा न पूजा की करें । इसी पूजन में पूज्य, पूजक, पूजा और पूजा - फल का सारगर्भित स्वरूप निम्न पंक्तियों के अलावा और कहाँ मिलेगा?
पूज्य ज्ञान-वैराग्य है पूजक श्रद्धावान । पूजा गुण अनुराग अरु फल है सुख अम्लान ॥
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