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क्रमबद्धपर्याय : कुछ प्रश्नोत्तर पड़ेगा - ऐसा नहीं है। वस्तु के परिणमन को जानने की योग्यता केवलज्ञान में है, अतः वह सहज जानता मात्र है। 4. क्रमबद्धपर्याय में निम्न अपेक्षाओं से अनेकान्त घटित होता है।
अ) पर्यायें क्रमबद्ध ही होती हैं, अक्रमबद्ध नहीं, यह विधि-निषेधरूप अनेकान्त है।
ब) गुण अर्थात् सहवर्ती पर्यायें अक्रमरूप (युगपत्) हैं तथा क्रमवर्ती पर्यायें क्रमबद्ध हैं- यह गुण-पर्यायात्मक वस्तु में घटित होनेवाला अनेकान्त है। ___स) प्रत्येक गुण प्रति समय परिणमता है, अतः अनन्त पर्यायें एक साथ होती हैं, तथा एक गुण की त्रिकालवर्ती पर्यायें अपने निश्चित क्रमानुसार होती हैं - ऐसा पर्याय सम्बन्धी अनेकान्त है। ___ गति, इन्द्रिय, काय, योग आदि चौदह मार्गणायें एक साथ होती है तथा मिथ्यात्व सम्यक्त्व आदि गुणस्थान यथायोग्य क्रम से होते हैं।
5. क्रम' और 'अक्रम' शब्द के दो अर्थ होते हैं। (1) क्रम अर्थात् एक के बाद एक और अक्रम अर्थात् युगपत् एक साथ
(2) क्रम अर्थात् निश्चित क्रमानुसार इसके बाद यही, अन्य नहीं, और अक्रम अर्थात् सब कुछ अनिश्चित, अव्यवस्थित। जब पर्यायों में अक्रमपना बताया जाये, तब वह प्रथम अर्थ के अनुसार होता है, द्वितीय अर्थ के अनुसार नहीं, तथा इस अनुशीलन में द्वितीय अर्थ के अनुसार क्रमबद्धपर्याय पर विचार किया गया है। तदनुसार पर्यायें एक निश्चित क्रमानुसार ही होती हैं जो कि स्याद्वादी जैनदर्शन को मान्य है। ... 6. द्रव्य-पर्यायात्मक वस्तु में सम्यक्-अनेकान्त तथा उसके द्रव्य या पर्याय अंश में सम्यक्-एकान्त घटित होता है। क्रमबद्धपर्याय में पर्यायों की चर्चा है, अतः पर्यायें क्रमबद्ध ही होती है, और गुण भी वस्तु के अंश हैं, अतः वे अक्रमरूप ही हैं - ऐसा सम्यक् एकान्त घटित होता है।
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