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________________ क्रमबद्धपर्याय : कुछ प्रश्नोत्तर 2. किसी व्यक्ति की मृत्यु हत्या एक्सीडेन्ट, विषभक्षण आदि से होने पर लोग उसे अकाल मृत्यु कहते हैं। इस सन्दर्भ में निम्न तथ्यों पर विचार किया जाये : -: 89 अ) यह बात केवली भगवान जानते थे या नहीं? ब) एक्सीडेंट में इसी व्यक्ति की मृत्यु क्यों हुई, शेष लोगों की क्यों नहीं? स) उसकी मृत्यु उसी समय क्यों हुई, आगे पीछे क्यों नहीं? ... तो स्पष्ट हो जाएगा कि उस घटना का भी द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव निश्चित था; अतः कथित अकाल-मृत्यु भी अपने स्वकाल में हुई है, इसलिये अकाल मृत्यु से क्रमबद्धपर्याय का नियम भंग नहीं होता है। 3. पाठ्यपुस्तक में क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी कृत 'शान्ति पथप्रदर्शक' के आधार पर यह बात विशेष रूप से स्पष्ट की गई है। **** प्रश्न 12 गर्भित आशय :- यदि यह कहा जाये कि केवलज्ञान के अनुसार अकाल मृत्यु भी स्वकाल में हुई है, तो इसका अर्थ यह भी तो निकलता है कि किसी अपेक्षा से वह अकाल मृत्यु भी है? फिर अकाल मृत्यु का निषेध कैसे किया जा सकता है? उत्तर : 1. आयुकर्म के अपकर्षण, उदीरणा आदि से होनेवाले मरण की अपेक्षा ऐसा भी कहा जाता है, परन्तु यदि यह विचार किया जाये कि ऐसा होना केवली के ज्ञान में जाना जाता था या नहीं? तो स्पष्ट जायेगा कि अकाल मृत्यु कही जाने पर भी घटना पूर्व निश्चित ही थी, अतः वह भी स्वकाल मृत्यु है । 2. घड़े में से पानी टपकने का अथवा कैदी के उदाहरण से यह बात स्पष्ट है कि क्षयोपशम ज्ञान की अपेक्षा जिसे अकालमृत्यु कहा जा रहा है, केवलज्ञान की अपेक्षा वह स्वकाल मृत्यु ही है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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