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________________ अहोभाग्य मूल्य भी नगण्य है। इस उपकार के समक्ष आभार जैसे शब्द तो बहुत तुच्छ मालूम पड़ते हैं। जुलाई 1998 में छिन्दवाड़ा प्रवास के पूर्व जब डॉ. साहव से इस सम्बन्ध में चर्चा की तो उन्होंने कहा - 'महाविद्यालय के छात्रों को पढ़ाने से वञ्चित रहने की क्षति सहन करना पड़ेगी'। उनका यह आकलन निरन्तर अनुभव करते हुए भी मैं इस क्षतिपूर्ति का प्रयास करता रहता हूँ। इसी श्रृंखला में प्रतिवर्ष 10 दिवसीय क्रमबद्धपर्याय-शिविर लगाने का प्रसंग बना। अब तक पूना, राजकोट, अहमदाबाद और कोटा में आयोजित इन शिविरों में जिज्ञासु समाज ने अपार उत्साह प्रदर्शित करते हुए इस विषय को गहराई से समझने का प्रयास किया। इन शिविरों में डॉ. साहब की अनुपम कृति क्रमबद्धपर्याय पढ़ाते समय यह आवश्यकता महसूस हुई कि यदि प्रशिक्षण निर्देशिका की शैली में इस पुस्तक की निर्देशिका लिखी जाए तो अन्य प्रवचनकार बन्धु, तथा महाविद्यालय के भूतपूर्व छात्र भी इस विषय को लघु-शिविरों में पढ़ाकर जन-जन तक पहुँचा सकेंगे। __ इसप्रकार का यह मेरा पहला प्रयास था, अतः थोड़ा संकोच भी हुआ, परन्तु अनेक छात्रों की प्रबल प्रेरणा से साहस करके यह कार्य सन् 2001 में प्रारम्भ किया। बीना में आयोजित प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर आदरणीय डॉ. साहब को इसका थोड़ा अंश दिखाकर उनसे मार्ग-दर्शन भी प्राप्त किया। अनेक दुविधाओं के कारण यह कार्य बीच में रुक गया परन्तु क्रिया: परिणाम और अभिप्राय पुस्तक का लेखन कार्य और अन्य कार्य भी चलते रहे। ____ मुम्बई एवं अमेरिकावासी मुमुक्षु भाइयों के आग्रह से सन् 2002 से जून-जुलाई में अमेरिका-प्रवास का कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया, जिसके फलस्वरूप क्रमबद्धपर्यायशिविर बन्द हो गए। अतः इस निर्देशिका के लेखन के अधूरे कार्य को पूरा करने का विकल्प तीव्र हो गया जिसके फलस्वरूप यह क्रमबद्धपर्याय-निर्देशिका की कल्पना साकार हो रही है। इसकी लेखन-शैली के सम्बन्ध में सर्वाधिक दुविधा यह रही कि पाठ्य-पुस्तक को छोटे-छोटे गद्यांशों में बांट कर प्रत्येक गद्यांश का स्पष्टीकरण किया जाए या सम्पूर्ण अनुशीलन को प्रश्नोत्तर-माला का रूप दे दिया जाए। विषय की विशेष स्पष्टता प्रथम विकल्प की पूर्ति में भासित हुई, जबकि वर्तमान में हर विषय को मात्र प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत करने की पद्धति प्रचलित है। गहन-विचार विमर्श के फलस्वरूप यह निर्णय किया गया कि निर्देशिका के मूल भाग में गद्यांशों में समागत विचार-बिन्दुओं का उल्लेख करते हए आवश्यकतानुसार विशेष स्पष्टीकरण किया जाए तथा उससे सम्बन्धित प्रश्न भी दिए जायें, ताकि छात्रगण उक्त प्रश्नों का उत्तर विचार-बिन्दु और स्पष्टीकरण में खोजकर लिखें। इससे विषय के सूक्ष्म चिन्तन में उनका उपयोग लगेगा, तथा वे विषय को गहराई से समझ सकेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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