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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका परीक्षा कार्यक्रम घोषित होते ही विद्यार्थी-गण पढ़ाई में लग जाते हैं, तथा जब तक परीक्षा कार्यक्रम घोषित न हो, तबतक पढ़ाई में एकाग्र नहीं होते। इससे सिद्ध होता है कि जिसका आत्महित का काल दूर है, उन्हें काल का निश्चित होना नहीं सुहाता, इसलिए वे पर्यायों के क्रम में परिवर्तन की मिथ्याबुद्धि से ग्रस्त रहते हैं
और स्वभाव-सन्मुखता का पुरुषार्थ नहीं करते। ___ आज सारी दुनिया उतावली हो रही है, विषयों में अन्धी होकर दौड़ रही है। यह अपनी दौड़ में इतनी व्यवस्त है कि कहाँ जाना है और क्यों जाना है? इसका विचार करने की भी उसे फुरसत नहीं है। कहा भी है :
भोगों को अमृतफल जाना, विषयों में निशदिन मस्त रहा।
उनके संग्रह में हे प्रभुवर, मैं व्यस्त त्रस्त अभ्यस्त रहा। विशेष निर्देश :-उक्त पंक्तियों में व्यस्त' 'त्रस्त' और 'अभ्यस्त' शब्द विशेष ध्यान देने योग्य हैं। इन्हें उदाहरण देकर समझाना चाहिए। ___7. किसी भी चौराहे पर इस जगत का उतावलापना देखा जा सकता है, जहाँ मौत की कीमत पर भी व्यक्ति दो मिनिट भी रुकना नहीं चाहता। ऐसे उतावले
और अधीर लोगों की समझ में यह बात कैसे आ सकती है कि जो कार्य जब होना होगा तभी होगा। धैर्यपूर्वक गम्भीर मनन-चिन्तन करने वाले वीर पुरुषों की समझ में ही यह बात आ सकती है। वही जीव सच्चा पुरुषार्थ प्रगट कर सकता है। इसे समझने के लिए पक्ष-व्यामोह से भी मुक्त होना चाहिए।
'धैर्य' अर्थात् जब तक यथार्थ निर्णय न हो जाए तब तक समझने के लिये प्रयत्नशील रहे, बीच में ही प्रयत्न बन्द न कर दे।
'गम्भीरता पूर्वक' अर्थात् प्रत्येक बिन्दु पर गहराई से विचार करें, स्थूल चिन्तन या हंसी-मजाक में बात को उड़ा न दें।
'वीर' अर्थात् अपनी भूल को स्वीकार करके दृष्टि को स्वभाव सन्मुख करने की क्षमता प्रगट करें।
‘पक्ष-व्यामोह' अर्थात् किसी व्यक्ति या सम्प्रदाय से प्रभावित होकर निर्णय करना।
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