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________________ प्रकाशकीय वीतरागी देव-गुरु-धर्म एवं आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के प्रति अगाध श्रद्धा सम्पन्न पण्डित अभयकुमारजी शास्त्री द्वारा लिखित यह क्रमबद्धपर्याय-निर्देशिका प्रकाशित करते हुए हम अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। इस निर्देशिका का स्वरूप और इसकी उपयोगिता के सन्दर्भ में उन्होंने 'अहो भाग्य' में अपने विचार व्यक्त कर दिये हैं, जिन्हें यहाँ दोहराने की आवश्यकता नहीं है। __ पण्डित अभयकुमारजी को लघुवय से ही पूज्य गुरुदेवश्री एवं डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का सान्निध्य प्राप्त हुआ है। धनार्जन हेतु व्यापार आदि से विमुख होकर उन्होंने अपना सारा जीवन आध्यात्मिक चिन्तन-मनन, अध्ययन-अध्यापन एवं लेखन आदि में समर्पित किया है। उनके द्वारा लिखी गई अपने ढंग की यह अपूर्व कृति निश्चित रूप से समाज को लाभदायक होगीइसमें कोई सन्देह नहीं है। जुलाई 1998 से प्रारम्भ छिन्दवाड़ा प्रवास के पश्चात उनके द्वारा रचित आत्मानुशासन पद्यानुवाद, लघुतत्त्व स्फोट पद्यानुवाद, नियमसार कलश पद्यानुवाद तथा भक्ति गीतों के 12 कैसेटों से समाज लाभान्वित हो ही रहा है। एतदर्थ हम उनके विशेष आभारी हैं। ___इसकी प्रकाशन व्यवस्था का दायित्व सम्हालने के लिए श्रीमान अखिल बंसल जयपुर भी धन्यवाद के पात्र हैं। हमें आशा है, सभी लोग इस कृति के माध्यम से क्रमबद्धपर्याय का मर्म समझकर पर-पदार्थों और पर्यायों के कर्त्तत्व से रहित होकर अकर्ता ज्ञायक स्वभाव की अनुभूति की ओर अग्रसर होंगे। ब्र. यशपाल जैन, एम.ए., जयपुर प्रकाशन मंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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