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क्रमबद्ध र्याय : निर्देशिका
प्रत्येक वस्तु निश्चित स्थान पर ही हो, प्रत्येक कार्य समय पर हो, तो वह घर व्यवस्थित है, यदि घर में वस्तुयें यथा-स्थान न हों तो वह अव्यवस्थित है।
हमारी धारणा या जगत की परम्परानुसार जो कार्य समय पर हो तो हम उन्हें व्यवस्थित समझते हैं। 70-80 वर्ष की उम्र में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए, युवावस्था में भी कोई केन्सर से चल बसे, पुरुष को दाढ़ी-मूछे हों, फल व अनाज समय पर हो- यह सब हमें व्यवस्थित लगता है। परन्तु इसके विपरीत हो अर्थात् किसी युवक का हार्ट-फेल हो जाए, महिला को दाढ़ी-मूंछ आ जाये, सर्दियों में आम और गर्मियों में जाम पकने लगें, तो हम इसे अव्यवस्थित समझेंगे। क्रमबद्धपर्याय का सिद्धान्त कहता है कि जगत की जो-जो घटनाएँ हमें अव्यवस्थित दिखाई देती हैं, वे भी वस्तु की परिणमन व्यवस्था के व्यवस्थित क्रम में ही हैं। वे अव्यवस्थित तो हमें इसीलिए लगती हैं, कि हमारी धारणा या इच्छा वैसी नहीं है।
(द) वस्तु का परिणमन, क्रम-नियमित और व्यवस्थित होने के साथ-साथ स्वाधीन भी है। यह ध्यान देने की बात है कि यदि हमारी इच्छानुसार वस्तु परिणमित होने लगे तो वह हमारी इच्छा के आधीन हो गई, स्वाधीन कहाँ रही, अतः स्वतंत्रता से आशय इच्छानुसार परिणमन से नहीं, अपितु वस्तु की तत्समय की योग्यतानुसार परिणमन से है।
इसप्रकार क्रमबद्धपर्याय' से आशय प्रत्येक वस्तु के क्रमिक, नियमित, व्यवस्थित और स्वाधीन परिणमन के नियम से है। प्रश्न :4. वस्तु के परिणमन की चारों विशेषताओं को बताते हुए प्रत्येक का आशय स्पष्ट
कीजिए?
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