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________________ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन 23 व्यवस्थित है। वह हमें अज्ञान और राग-द्वेष के कारण वह अव्यवस्थित दिखाई देता है। 2. वस्तु की परिणमन-व्यवस्था की चार विशेषतायें हैं :(अ) क्रम से होना (ब) नियमित होना (स) व्यवस्थित होना (द) स्वतंत्र होना इन विशेषताओं का आशय निम्नानुसार है :(अ) वस्तु की पर्यायें क्रम से अर्थात् जिसके बाद एक होती हैं। (ब) यह परिणमन नियमित है अर्थात् जिसके बाद जो पर्याय होनेवाली है; वही होगी, अन्य नहीं। __उदाहरण :- किसी सभा में छात्रों को पुरस्कार लेने के लिए बुलाया जाए, तो सभी छात्र एक के बाद एक तो आयेंगे ही, परन्तु जिसके बाद जिसको बुलाया जाएगा, वही आयेगा, अन्य नहीं; क्रम-नियमित विशेषता का यही अर्थ है। (स) वस्तु के परिणमन का नियमित क्रम, व्यवस्थित भी होता है; अर्थात् उन छात्रों को अधिक अंक प्राप्त करनेवालों के क्रम से बुलाया जाएगा। अथवा यदि किसी सभा में मञ्चासीन व्यक्तियों का स्वागत करना हो तो उसका क्रम व्यवस्थित होता है; अर्थात् सर्वप्रथम अध्यक्ष, फिर मुख्य-अतिथि, फिर उद्घाटनकर्ता फिर विशिष्ट अतिथि आदि का व्यवस्थित क्रम होना आवश्यक है। इसीप्रकार बालक, युवा और वृद्धावस्थारूप मनुष्य की अवस्था का व्यवस्थित क्रम है, इससे विपरीत क्रम असम्भव है। 3. व्यवस्थित क्या है और अव्यवस्थित क्या है? वास्तव में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का उचित समायोजन ही व्यवस्थितपने का सूचक है तथा उनमें असंतुलन अव्यवस्थितपने का सूचक है। घर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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