SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी बात 17 गद्यांश 1 क्रमबद्धपर्याय औरों के लिए.......... ................बात करनी होगी। (पृष्ठ IX पैरा 1 से 4 तक) विचार बिन्दु :- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक की दृष्टि में क्रमबद्धपर्याय विषय की कितनी महिमा है-इसका उल्लेख किया गया है। इसे जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प व्यक्त करते हुए वे सभी लोगों से इस विषय पर निष्पक्ष एवं गंभीर विचार मंथन की अपेक्षा रखते हैं। प्रश्न :1. लेखक की दृष्टि में क्रमबद्धपर्याय का क्या महत्व है? 2. इस विषय पर चर्चा के बारे में लेखक का क्या दृष्टिकोण है? **** गद्यांश 2 मेरी समझ में यह कैसे.. ........लाभ भी प्राप्त हुआ। (पृष्ठ IX पैरा 5 से पृष्ठ XI पैरा 11 तक) विचार बिन्दु :- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपने जीवन की उस घटना का उल्लेख किया है, जिसके माध्यम से उन्हें क्रमबद्धपर्याय एवं उसके प्रस्तुतकर्ता आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्यश्री कानजीस्वामी का परिचय हुआ। आत्मधर्म में स्वामीजी के तेरह प्रवचन पढ़ने के बाद उन्हें जो आध्यात्मिक उपलब्धि हुई और उनकी जीवनचर्या में जो परिवर्तन आया, उसका उन्होंने खुलकर वर्णन किया है। विशेष निर्देश :- इसका रस कुछ ऐसा लगा कि चढ़ती उम्र के सभी रस फीके हो गए - इस वाक्यांश पर विशेष ध्यान आकर्षित किया जाए। प्रश्न :3. लेखक के जीवन में क्रमबद्धपर्याय' सम्बन्धी चर्चा कैसे प्रारंभ हुई? 4. आत्मधर्म के प्रवचनों को पढ़कर लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा? **** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy