SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 1 अपनी बात लेखक ने सर्वप्रथम अपनी बात लिखकर अपने जीवन के उन पहलुओं पर प्रकाश डाला है, जो क्रमबद्धपर्याय से सम्बन्धित हैं। उन्होंने क्रमबद्धपर्याय के सन्दर्भ में उत्पन्न शंका से प्रारंभ करके पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के समागम में आकर क्रमबद्धपर्याय' पुस्तक लिखने तक की सभी घटनाओं का उल्लेख करते हुए अपने जीवन में इस सिद्धान्त का सर्वोपरि स्थान निरूपित किया है। हम सभी को लेखक के जीवन से इस विषय को समझकर आत्मकल्याण करने की प्रेरणा मिले- इस उद्देश्य से इस प्रकरण पर चर्चा की जा रही है। 'क्रमबद्धपर्याय' का शिक्षण ‘अपनी बात' से प्रारंभ कर देना चाहिए। सर्वप्रथम अपनी बात' के संबंध में अध्यापक निम्नानुसार विशेष परिचय दें यद्यपि क्रमबद्धपर्याय जिनागम में प्रतिपादित मौलिक सिद्धांत है, जिसे इस युग में आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी ने प्रस्तुत किया है; तथापि इस सिद्धांत को आगम और युक्तिसंगत तर्कप्रधान शैली में प्रस्तुत करने का श्रेय डॉ. हुकमचंदजी भारिल्ल को है। उन्होंने स्वयं इस विषय का गहराई से चिन्तन और मंथन करके इसका अमृतपान किया है, तथा अपने गंभीर चिंतन से इस सिद्धान्त के विरुद्ध प्रस्तुत किए जाने वाले तर्कों का समाधान किया है। जब यह पुस्तक लिखी जा रही थी, तब वे प्रवचनों में भी प्रायः इसी विषय की चर्चा करते थे। विदेशों में भी प्रायः इसी विषय की चर्चा धाराप्रवाह अनेक वर्षों तक चली। अतः अनेक वर्षों तक मुमुक्षु समाज का वातावरण क्रमबद्धपर्याय की चर्चा से ओतप्रोत रहा। अभी भी यह धारा चालू है। यद्यपि अन्य अनेक विद्वान भी इस विषय की चर्चा करते हैं, तथापि उसे मौलिक ढंग से प्रस्तुत करने के कारण इसका श्रेय डॉ. साहब को ही है, इसीलिए अब कुछ लोग उनसे आपकी क्रमबद्धपर्याय' ऐसा कहकर भी सम्बोधन करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy