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________________ 111 क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर यहाँ अक्रमबद्ध का आशय अव्यवस्थित या अनियमितिपने से नहीं है, अपितु एक साथ होने से है। भेद की अपेक्षा गुणों को भी पर्याय कहा जाता है। द्रव्य में सभी गुण एक साथ होते हैं, अतः उन्हें सहवर्ती पर्याय कहते हैं। अतः सहवर्ती पर्यायों की अपेक्षा पर्यायों को अक्रमवर्ती कहा जाता है। सभी गुण एक साथ परिणमन करते हैं, अतः प्रत्येक द्रव्य में अनन्त पर्यायें एक साथ होने से वे अक्रमवर्ती हैं। संसारी जीव में गुणस्थानरूप पर्यायें तो क्रम से अर्थात् एक के बाद निश्चित होती हैं, परन्तु गति, इन्द्रिय, काय आदि चौदह मार्गणायें एक साथ होती है अतः मार्गणारूप पर्यायें अक्रमवर्ती हैं। इसप्रकार पर्यायें कथञ्चित् अक्रमबद्ध भी हैं - इस कथन का यथार्थ आशय समझना चाहिए। **** केवलज्ञानमूर्ति यह आतम नय-व्यवहार कला द्वारा। वास्तव में सम्पूर्ण विश्व का नितप्रति है जाननहारा॥ मुक्तिलक्ष्मीरूपी कामिनि के कोमल वदनाम्बुज पर। कामक्लेश, सौभाग्य चिन्हयुत शोभा को फैलाता है। श्री जिनेश ने क्लेश और रागादिक मल का किया विनाश। निश्चय से देवाधिदेव वे निज स्वरूप का करें प्रकाश॥ - नियमसार कलश 272 का पद्यानुवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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