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अध्याय
क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का जीवन पर प्रभाव
क्रिया, परिणाम और अभिप्राय की परिभाषा, स्वरूप आदि के सम्बन्ध में आवश्यक चर्चा करने के उपरान्त यह जानना आवश्यक है कि हमारे जीवन में इनका क्या प्रभाव पड़ता है ?
यदि लौकिक जीवन के सन्दर्भ में विचार किया जाए तो यह स्पष्ट ही है कि हमारी क्रियायें ही जगत को प्रभावित करती हैं तथा हम भी दूसरों की क्रियाओं से प्रभावित होते है। परिणाम भी जब तक क्रिया में न उतरे अर्थात् क्रियान्वित न हों, तब तक उनका लोकजीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यदि किसी व्यक्ति को चोरी करने या किसी की हत्या करने का भाव आए, परन्तु वह चोरी या हत्या न करे तो उससे किसी दूसरे को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए लौकिक कानून भी मात्र परिणामों के आधार पर किसी को अपराधी नहीं मानता । वह तो तभी अपराधी मानता है, जब क्रिया में अपराध हो गया हो । इस विषय पर डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल ने अपनी कृति “अहिंसा : एक विवेचन' में विशेष प्रकाश डाला है। . परिणामों के समान अभिप्राय भी लोकजीवन पर सीधा प्रभाव नहीं डालता । वह भी परिणामों के माध्यम से वाणी में या क्रिया में व्यक्त हो, तभी प्रभावित करता है। यदि कोई व्यक्ति आपके मकान को अपना मकान मानता रहे, परन्तु किसी से कुछ कहे नहीं व आपके मकान में जाए भी नहीं, तो इससे आपको क्या फर्क पड़ेगा ? कुछ भी नहीं। ___ स्त्री, पुत्र, मकान शरीरादि को हम अनादि से अपना मान रहे हैं, तो क्या इससे वे सचमुच में हमारे हो गये ? नहीं । प्रत्येक द्रव्य अपने क्रमबद्ध
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