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क्रिया, परिणाम और अभिप्राय में उत्तरोत्तर सूक्ष्मता
इसप्रकार क्रिया का ज्ञान सबको होने पर भी परिणामों को अन्य लोग नहीं जान सकते, जब वे क्रिया के माध्यम से व्यक्त होते हैं, तभी अन्य लोग क्रिया के माध्यम से उनका ज्ञान कर पाते हैं।
अभिप्राय की सूक्ष्मता :- क्रिया और परिणामों से परिचित यह जगत अभिप्राय से बिलकुल अपरिचित ही है, क्योंकि अभिप्राय की धारा परिणामों के तल में बहती है । जगत के प्राणियों में मिथ्या मान्यताओं का प्रवाह अनादिकाल से चला आ रहा है, फिर भी उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता । यदि कदाचित् वह ख्याल में आ भी जाए तो वह अभिप्राय और परिणाम में भेद नहीं समझ पाता।
जिसप्रकार कार पहियों द्वारा सड़क पर दौड़ती है, परन्तु स्टीयरिंग के द्वारा उसकी दिशा सुनिश्चित की जाती है; उसीप्रकार परिणाम अभिप्राय से भिन्न होने पर भी परिणामों की दिशा अभिप्राय द्वारा सुनिश्चित की जाती है । जब तक अभिप्राय में देहादि में अहंबुद्धि रहती है, तब तक परिणामों की धारा परपदार्थों की ओर ही बहती है, तथा जब अभिप्राय में अपने चैतन्य स्वभाव में अंहबुद्धि हो जाती है, तब परिणामों का प्रवाह भी स्वसन्मुख हो जाता है। ___ अभिप्राय में परिवर्तन एक गुप्त क्रान्ति है। जिसप्रकार बीज में अंकुर फूटता है, परन्तु वह पृथ्वी के भीतर ही रहता है, इसलिए किसी को दिखता नहीं है। जब वह पौधा बनकर ऊपर आता है, तभी वह जगत को दिखता है; उसीप्रकार अभिप्राय बदल जाने पर तत्काल परिणामों और क्रिया में बहुत बड़ा परिर्वतन दिखाई नहीं पड़ता; कालान्तर में परिणामों में विशेष परिर्वतन होता है, तभी वह क्रिया के माध्यम से जगत को दिखाई पड़ सकता है।
इसप्रकार अभिप्राय, परिणामों से भी अधिक सूक्ष्म वृत्ति है, जो जिनागम के आलोक में विशेष प्रयत्न पूर्वक निरीक्षण करने पर ही हमारे ख्याल में आ सकती है।
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