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________________ 13 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का स्वरूप उत्तर:- यह बात परम सत्य है कि ज्ञानी गुरु या सर्वज्ञ भगवान की देशना प्राप्त किए बिना सम्यग्दर्शन नहीं होता; परन्तु यह भी नियम नहीं है कि उनकी देशना मिलने पर सम्यग्दर्शन हो ही जाएगा। यदि ऐसा नियम होता तो समवसरण में सभी जीव सम्यग्दृष्टि होते। अतः उक्त दोनों कथनों में कोई विरोध नहीं है। जिनागम का पठन-पाठन करने पर भी यह जीव अनेक प्रकार की विपरीत मान्यताओं के कारण अज्ञानी रह जाता है - इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ के सातवें अधिकार में पण्डित टोडरमलजी ने जैनाभासी मिथ्यादृष्टियों का वर्णन करते हुए निश्चयाभासी, व्यवहाराभासी, उभयाभासी और सम्यक्त्व के सन्मुख मिथ्यादृष्टियों की विस्तृत चर्चा की है। उक्त चारों प्रकार का मिथ्यात्व अभिप्राय में पाया जाता है, क्रिया और परिणाम में नहीं। क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का विशेष वर्णन व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि के प्रकरण में आया है। अतः इस विषय को गहराई से समझने के लिए उक्त चारों प्रकार के मिथ्यात्व की संक्षिप्त जानकारी होना आवश्यक है। ___ यहाँ यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि उक्त चारों प्रकार के मिथ्यात्व में प्रथम तीन प्रकार के मिथ्यादृष्टियों की तो तत्त्व-निर्णय में ही भूल है। सम्यक्त्व सन्मुख मिथ्यादृष्टि जीव तत्त्व-निर्णय की प्रक्रिया में है। इसलिए उसके अभिप्राय में अगृहीत मिथ्यात्वरूप परिणमन होते हुए भी उसके तत्त्व-निर्णय में स्थूल भूल नहीं होती। अतः पण्डितजी ने उसका स्वरूप बताते हुए तत्व-निर्णय की प्रक्रिया का वर्णन किया है। यदि उसके तत्त्व-निर्णय में कोई स्थूल विपरीतता हो जाए तो वह निश्चयाभासी, व्यवहाराभासी या उभयाभासी हो जाएगा और यदि वह यथार्थ तत्त्वनिर्णय कर ले तो अल्प-काल में सम्यग्दृष्टि हो जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003168
Book TitleKriya Parinam aur Abhipray
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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