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________________ चक्षुष्मान् ! तुम स्वाध्याय की साधना करो। पहले स्वाध्याय के प्रति रुचि पैदा करो फिर स्वाध्याय करो। रुचि है तो समय अपने आप निकल आएगा । यदि रुचि नहीं है तो समय न मिलने का बहाना बना का बना रहेगा। जिसमें रुचि है, वह काम नहीं होता, ऐसा कब होता है ! वही काम नहीं होता, जिसमें हमारी रुचि जागृत नहीं है। रुचि को जगाना एक कला है। समाचार पत्र पढ़ने में रुचि होती है। उपन्यास और कथा-कहानी पढ़ने में रुचि होती है। रेडियो सुनने और टी. वी. देखने में भी रुचि होती है। मैं जिस स्वाध्याय की चर्चा कर रहा हूं, वह इन सबसे परे है। जिस पुस्तक से अपने बारे में जानकारी मिले, अपनी आदतों और वृत्तियों को समझने, परखने तथा बदलने का मार्गदर्शन मिले, जिससे तत्त्व का बोध मिले, उस पुस्तक को पढ़ना, उसमें प्रतिपादित विषय पर मनन करना, चिंतन करना और अभ्यसनीय का अभ्यास करना, यह है हमारा विकसित स्वाध्याय । ___ समाचारपत्रों और उपन्यासों को पढ़ना मैं बुरा नहीं मानता किन्तु स्वाध्याय के बिना समाचारपत्रों और उपन्यासों को पढ़ना खतरनाक भी मानता हूं । यदि तुम्हारा मस्तिष्क अध्यात्म से प्रशिक्षित नहीं है तो समाचार मूल्य (न्यूज वेल्यू) वाली घटनाएं तुम्हें प्रभावित कर देंगी। हिंसा, आवेश, वासना का तूफान जीवन को अस्त-व्यस्त कर डालेगा। कुछ भी पढ़ो तो बहुत सावधानी से पढ़ो । केवल रुचिकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003167
Book TitleAdhyatma ki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size2 MB
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