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चक्षुष्मान् !
ध्यान केंद्रित करो और देखो - मन की चंचलता कितनी कम हुई है, भावक्रिया का अभ्यास कितना परिपुष्ट हुआ है । 'प्रत्येक कार्य को जानते हुए करो, यह निर्देश सुना है, इसका मूल्यांकन भी किया है, किंतु चंचलता की स्थिति में इसकी अनुपालना नहीं हो सकती । इसकी अनुपालना की भूमि है - एकाग्रता का विकास ।'
भावकिया जागरूकता की विशिष्ट अवस्था है । जागरूकता और एकाग्रता में घनिष्ट संबन्ध है, इसलिए सर्वप्रथम एकाग्र होने की साधना करो ।
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एकाग्र होना सरल नहीं है तो असंभव भी नहीं है । जो संभव है, उसके लिए पुरुषार्थ किया जा सकता है । जितनी श्रद्धा, जितना पुरुषार्थ, उतनी सफलता ।
पुरुषार्थ के साथ विधि को जोड़ो । पुरुषार्थं की अल्पता में भी सिद्ध हो में किया जाने वाला कार्य होता ।
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विधि से किया हुआ कार्य जाता है । विधि के अभाव पुरुषार्थ की प्रबलता में भी सिद्ध नहीं
विधि का पहला पाठ है— कायगुप्ति । शरीर की प्रवृत्ति का जितना निरोध कर सको, करो। अपने भीतर झांको, निस्पन्द रहो । शरीर की चंचलता को छोड़ो। स्थिरता का अनुभव हो । यह अनुभूति एकाग्रता की दिशा में ले जाएगी। यह आरोहण का बिंदु है । इसे पकड़कर तुम आरोहण कर सकोगे ।
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बीदासर
१ फरवरी, १९९३
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