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प्रस्तुति
आज का सुपरिचित शब्द है अध्यात्म और वास्तव में बहुत अपरिचित शब्द है अध्यात्म । आत्मा है तो अध्यात्म है। अध्यात्म आत्मा से शून्य कभी नहीं होता। आत्मा में जो हो रहा है, उसका ज्ञान है अध्यात्म । ज्ञान शून्य अध्यात्म अर्थहीन शब्द जैसा हो जाता है । प्रस्तुत पुस्तक में आत्मा तक पहुंचने की वर्णमाला टंकित है । वर्णमाला समूचे ज्ञान की मातृका है। अध्यात्म की मातृका है अपने आपको जानना, समझना और अपने आपको जानने की पगडडियों पर चलना। विश्वास है-ये पगडंडियां रुकती नहीं हैं, लक्ष्य तक पहुंचा देती है।
युवाचार्य महाप्रज्ञ
१७-६-९३ जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.)
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